राष्ट्रीय जनमोर्चा ब्यूरो
नई दिल्ली।मौत की सजा के केसों को लेकर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। केंद्र ने अर्जी में कहा है कि मौत की सजा के मामलों में पीड़ितों को केंद्र में रखकर गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए। केंद्र ने कहा है कि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की जो गाइडलाइन है वह ‘दोषी केंद्रित’ है। इसके चलते दोषी कानून से खेलते हैं और मौत की सजा से बचते रहते हैं।
कानूनी पेंचीदिगियों का सहारा लेकर मौत को धता बता रहे फांसी की सजा पाए दोषियों पर शिकंजा कसने के लिए केन्द्र सरकार आगे आयी है। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मांग की है कि कोर्ट आदेश दे कि फांसी की सजा पाए दोषियों की दया याचिका खारिज होने के बाद सात दिन के भीतर डेथ वारंट जारी कर दिया जाएगा और उसके बाद सात दिन के भीतर उन्हें फांसी दे दी जाएगी। इस पर उनके साथी सह अभियुक्तों की पुनर्विचार याचिका, क्यूरेटिव याचिका या दया याचिका लंबित रहने का कोई असर नहीं पड़ेगा। केन्द्र सरकार ने न्याय का इंतजार करते दुर्दात अपराध के पीडि़तों का हवाला देते हुए कोर्ट से इस बारे में दिशा-निर्देश तय करने का आग्रह किया है।
सरकार ने शत्रुघन चौहान मामले में दिए गए पूर्व फैसले में फांसी के लिए तय की गई 14 दिन की समय सीमा को घटा कर 7 दिन करने का आग्रह किया है। केंद्र ने कहा है कि देश कुछ अपराध का सामना कर रहा है जो मौत की सजा के साथ दंडनीय हैं। इस तरह के अपराध में आतंक, बलात्कार, हत्या आदि से संबंधित अपराध शामिल हैं। बलात्कार का अपराध न केवल देश के दंड संहिता में परिभाषित अपराध है, बल्कि किसी भी सभ्य समाज में सबसे भयानक और अनुचित अपराध है। बलात्कार का अपराध केवल एक व्यक्ति और समाज के लिए अपराध नहीं है, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध है। बलात्कार के ऐसे जघन्य और भयावह अपराध के विभिन्न उदाहरण हैं, जिसमें पीड़िता की हत्या के समान रूप से भयानक और जघन्य अपराध शामिल हैं जो राष्ट्र की सामूहिक अंतरात्मा को हिला देता है। केंद्र ने कहा है कि शत्रुघ्न सिंह चौहान मामले में माननीय न्यायालय ने दिशा-निर्देश दिए हैं और उक्त निर्देश इस माननीय न्यायालय द्वारा अनिवार्य रूप से दोषी के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए जारी किए हैं। दोषियों के अधिकारों का ध्यान रखते हुए, पीड़ितों, उनके परिवारों और बड़े सार्वजनिक हित में दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक है कि वे दोषी पाए जाएं। इनसे ऐसे भयानक, क्रूर, घृणित, भयावह, भीषण और भयंकर अपराधों के दोषियों को कानून से साथ खेलने की इजाजत मिल गई है और सजा लंबी खिंच गई है।
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