
जितेन्द्र बच्चन
दिल्ली। उत्तर प्रदेश के सीएम सोशल मीडिया शाखा लखनऊ में तैनात कर्मठ कर्मचारी पार्थ श्रीवास्तव ने 19 मई की शाम खुदकुशी कर ली। लेकिन जो सुसाइट नोट मिला है और मरने से पहले पार्थ ने ट्वीट किया था, उससे अब इस मामले की गुत्थी और उलझ गई है। सीधे-सरल शब्दों में कहें तो पार्थ मरना नहीं चाहता था, बल्कि उसे मरने पर मजबूर कर दिया गया। पार्थ ने खुदकुशी करने से पहले एक चिट्ठी लिखी थी। उस सुसाइट नोट में पार्थ ने अपनी मौत के कुछ जिम्मेदार लोगों के नाम भी उजागर किए हैं पर अभी तक इस मामले में पुलिस ने किसी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की जहमत नहीं उठाई। इससे जहां यूपी सरकार के सोशल मीडिया सेल के कुछ अधिकारी कर्मचारी आरोपों के घेरे में आ गए हैं, वहीं पुलिस ने चुप्पी साध रखी है। आखिर पुलिस की इस चुप्पी का राज क्या है?
लखनऊ के थाना इंदिरानगर के इंस्पेक्टर अजय प्रकाश त्रिपाठी ने ‘राष्ट्रीय जनमोर्चा’ से बताया कि पार्थ श्रीवास्तव (28) सेक्टर-9 स्थित वैशाली इन्केल्व के रहने वाले थे। उन्होंने बुधवार को अपने कमरे में पंखे से फांसी लगा ली। पिता रविन्द्र नाथ श्रीवास्तव ने देखा तो आनन-फानन में अन्य परिवारवालों की मदद से फंदे से उतारकर पार्थ को राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने पार्थ को मृत घोषित कर दिया। त्रिपाठी का यह भी कहना है कि परिजनों ने इस मामले में कोई तहरीर नहीं दी है, इसलिए तफ्तीश नहीं शुरू की गई। लेकिन पार्थ श्रीवास्तव ने मौत से पहले इस संबंध में जो ट्वीट किया था उसे किसी ने डिलीट कर दिया। इससे यह शक और गहरा गया कि पार्थ की मौत के जो जिम्मेदार हैं, निश्चित ही वे अब तमाम सबूतों को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।
पार्थ ने सुसाइड नोट में लिखा है, ‘मेरी आत्महत्या एक कत्ल है, जिसका जिम्मेदार उसने शैलजा और पुष्पेंद्र सिंह को ठहराया है।’ नोट में प्रणय, महेंद्र और अभय का भी जिक्र है। पुष्पेंद्र सिंह पर उत्पीड़न का आरोप है। वहीं सेवानिवृत्त आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने इस मामले में कई ट्वीट करके इसे संगठित अपराध बताया है। रिटायर किए गए आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने भी सवाल उठाते हुए पूछा है कि आखिर पार्थ के ट्वीट को किसने और क्यों डिलीट किया? आखिर क्या छिपाना चाहते हैं कुछेक ‘बड़े लोग’?
इस तरह इस मामले में कई सवाल उठ रहे हैं जो सूचना विभाग के पूरे तंत्र पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं। रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के ट्वीट्स से इसकी भी बू आती है कि जरूर इस मामले में कई साजिश काम रही है। उसका बेनकाब होना बेहद जरूरी है। अब सवाल इस पर भी उठ रहा है कि सीएम मीडिया टीम के दो कर्मचारियों को मान्यता प्राप्त पत्रकार कैसे बना दिया गया? दूसरी बात पार्थ ने भी अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि मेरी आत्महत्या एक कत्ल है, जिसके जिम्मेदार और सिर्फ राजनीति करने वाली शैलजा और उनका साथ देने वाले पुष्पेंद्र सिंह हैं। अभय भैया और महेंद्र भैया को इस बात का हल्का-सा ज्ञान भी नहीं कि लखनऊ कार्यालय में क्या चल रहा था। मैं आज भी मरते दम तक महेंद्र भैया और अभय भैया की अपने माता-पिता जितनी इज्जत करता हूं।
सुसाइड नोट की गहराई में जाएं तो पता चलता है कि सोशल मीडिया प्रकोष्ठ के पुष्पेंद्र सिंह द्वारा प्रताड़ित किए जाने का उन पर आरोप है। यह भी पता चल रहा है कि पार्थ ने कई बार ऊपर के अधिकारियों को भी मौखिक जानकारी दी थी। सीनियर पुष्पेंद्र द्वारा की जा रही प्रताड़ना की शिकायत की थी लेकिन उसकी नहीं सुनी गई। कुछेक लोगों ने बताया है कि कई बार पुष्पेंद्र ने कार्यालय में पार्थ की सार्वजनिक तौर पर बेइज्जती की! पुष्पेंद्र सिंह उसे नौकरी से निकलवाने की धमकी देता था। पुलिस अगर दोनों के बीच ह्वाट्सएप और फ़ोन पर हुई बातचीत को खंगाले तो और भी कई राज सामने आ सकते हैं।

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